Udham Singh Biography in Hindi

शहीद उधम सिंह भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। शहीद उधम सिंह के बारे पूरा भारत भी नहीं जानता, लेकिन जब से अमेज़न प्राइम पर उन पर बनी फिल्म आयी हैं तबसे हर कोई उनके बारे में जानने लग गया। इन्होने अपनी पूरी ज़िन्दगी देश के लिए न्योछावर कर दी।

शहीद उधम सिंह का जीवन परिचय – Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

बिंदु (Point) जानकारी (Information Shaheed Udham Singh Biography in Hindi)
पूरा नाम शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह
असल नाम शेरसिंह
जन्म दिनांक 26 दिसंबर 1899
जन्म स्थान सुनाम, संगरूर जिला, पंजाब
पिता का नाम टहल सिंह कंबोज
माता का नाम नारायण कौर (या नरेन कौर)
शिक्षा मैट्रिक पास
राजनीतिक विचारधारा क्रांतिकारी
पॉलिटिकल एसोसिएशन ग़दर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
मृत्यु 31 जुलाई 1940

Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

शहीद उधम सिंह का पूरा नाम शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह था और उनका असली नाम शेरसिंह था। शहीद उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के छोटे से गांव सुनाम में 26 दिसंबर 1899 में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार तेहाल सिंह था और पेशे से वो रेलवे क्रॉसिंग में वॉचमैन थे। उनकी माता का नाम नारायण कौर उर्फ नरेन कौर था और पेशे से वो गृहणी थी। शहीद उधम सिंह दो भाई थे उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था। शहीद उधम सिंह के सर से पिता साया छोटी उम्र ही हट गया था। उनके पिता जी का देहांत 1901 में हो गया था और पिता की मृत्यु के 6 वर्ष बाद ही उनकी माता जी का भी देहांत हो गया था। ऐसी दुखद परिस्थिति में दोनों भाइयो ने अपना बचपन अमृतसर के खालसा अनाथालय बिताया है। शहीद उधम सिंह के दुःख यही खत्म नहीं हुए 1917 में ही उनके भाई का भी देहांत हो गया। इस दुनिया में उधम सिंह बिलकुल अकेले पड़ गए थे।

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शहीद उधम सिंह जी की विचारधारा – Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

शहीद उधम सिंह ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई 1918 में पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने 1919 में अनाथालय छोड़ दिया। शहीद उधम सिंह के विचार शहीद भगत सिंह से मिलते थे। शहीद भगत सिंह के विचारो से उधम सिंह बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे। जब शहीद उधम सिंह 1935 में कश्मीर में थे तो शहीद भगत सिंह के तस्वीर के साथ उनको पकड़ा गया था। उस समय उनको शहीद भगत सिंह का सहयोगी और शिष्य मान लिया गया था। उधम सिंह जी को अपने देश से बहुत ज्यादा लगाव था वो हमेशा देश भक्ति गीत सुना करते थे।

Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

शहीद उधम सिंह जी की कहानी – Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

शहीद उधम सिंह 1919 में हुए जलियांवाला बाग घटना से बहुत ज्यादा प्रभावित हए थे। जलियांवाला बाग में अंग्रेजो ने निर्दोष लोगो को मौत के घाट उतार दिया था। इसमें कुछ बच्चे, बुजुर्ग, नौजवान और महिलाएं शामिल थे। इस घटना को शहीद उधम सिंह ने अपनी आँखो से देखा था। इसके बाद उनको बहुत ज्यादा दुःख हुआ था। उन्होंने उसी समय ये तय कर लिया था जिसके कहने पर भी ये सब हुआ हैं उसको वो सजा जरूर देकर रहेंगे। उधम सिंह जी हमेशा से ही भगत सिंह जी राहों पर चलते थे।

शहीद उधम सिंह ने अपने समय बहुत से क्रांति की थी। 1913 में गदर पार्टी का निर्माण किया ताकि पुरे भारत में क्रांति भड़का सके। 1924 में उधम सिंह ने इस पार्टी से जुड़ने का निश्चय कर लिया था। इसके बाद 1927 में भगत सिंह जी ने उनको वापिस देश आने का आदेश दिया। उधम सिंह वापस लौटे तो 25 सहयोगी, रिवाल्वर और गोला-बारूद आदि लेकर आए थे। लेकिन उनको अवैध तरीके से हथियार रखने के लिए गिरफ्तार कर लिया और अगले 4 साल तक जेल में बिताएं। लेकिन 1931 में वो जेल से रिहा कर दिया। इसके बाद वो अपने संकल्प को पूरा करने के लिए निकल पड़े कश्मीर के रस्ते से वे भागकर जर्मनी चले गए। 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंच गए और अपने कार्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार करने लगे और फिर 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के “कास्टन हाल” में माइकल ओ’ डायर को मारने के लिए दो शॉर्ट दाग दिए, जनरल डायर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गयी थी। इसके बाद भी उधम सिंह ने भागने का बिलकुल भी प्रयास नहीं किया। उन्होंने अपने देशवासियों के लिए वो सब कर दिखाया जो हर एक भारतीय चाहता था।

शहीद उधम सिंह की शहादत – Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

जनरल डायर की मृत्यु का दोषी मानते हुए उधम सिंह जी को 31 जुलाई 1940 लंदन के “पेंटोनविले जेल” में फांसी की सजा दी गयी। शहीद उधम सिंह जी के मृत शरीर के अवशेष को 31 जुलाई 1974 के दिन भारत को सौंपा गया। उनकी अस्थियों पुरे सम्मान के साथ भारत लाया गया और उनके गांव में उनकी समाधी बनाई गयी। इस तरह से उन्होंने मात्र 40 साल की उम्र अपने आप को देश के लिए समर्पण कर दिया। जिस दिन उनको फांसी दी गयी उस दिन हर एक भारतीय के अंदर अंग्रेजो के खिलाफ और भी आक्रोष बढ़ गया था। इनके शहीद होने के मात्र 7 वर्ष बाद भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया था।

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